खाना खाने के पहले और बाद जरूर बोलना चाहिए मंत्र, स्वास्थ्य के लिए हितकर होगा भोजन

मंत्र बोलने में आप असमर्थ हैं तो भोजन से पहले अपने गुरु या इष्ट देवता का स्मरण करें.
भोजन से पूर्व और पश्चात मंत्र बोलने से भोजन स्वास्थ्य के लिए काफी हितकर होता है

भारतीय परंपरा के अनुसार भोजन करने से पहले और बाद के कुछ नियमों के बारे में बताया गया है.  प्राचीन काल में लोग भोजन करने से पहले और बाद इन नियमों का पालन किया करते थे. आजकल की भागदौड़ भरी जिंदगी में लोगों के पास सही समय पर खाना खाने का भी वक्त नहीं होता. लोग हड़बड़ी में भोजन करते हैं या फिर खाते समय उनका ध्यान मोबाइल और टीवी जैसी चीजों पर भटका रहता है. घर के बड़े-बुजुर्ग भी अक्सर इन कार्यों के लिए टोका करते हैं. शास्त्रों में भी इस बात का जिक्र किया गया है कि अन्न में मां अन्नपूर्णा का वास होता है. इसलिए भोजन करने से पहले मां अन्नपूर्णा को प्रणाम करना चाहिए. ऐसा करने से हम उनके प्रति सम्मान प्रकट करते हैं. इसलिए भोजन करने के पहले और बाद मंत्र जरूर बोलना चाहिए. इससे मां अन्नपूर्णा प्रसन्न होती हैं और साथ ही भोजन स्वास्थ्य के लिए हितकर भी होता है.  भोजन के पूर्व और पश्चात बोले जाने वाले मंत्रों के बारे में.

 

भोजन करने से पहले बोले ये मंत्र
सनातन परंपरा में भोजन के पहले मंत्र पढ़ने की परंपरा चली आ रही है। मान्यता है कि इन मंत्रों के जप से देवी- देवता समेत अन्न देवता का आशीर्वाद सदैव हम पर बना रहता है। आइए जानते हैं कि आखिर ​हमें किस मंत्र को पढ़ने के बाद ही भोजन करना चाहिए।

भोजन करने से पहले बोले ये मंत्र
ॐ सह नाववतु, सह नौ भुनक्तु, सह वीर्यं करवावहै ।
तेजस्वि नावधीतमस्तु मा विद्विषावहै ॥
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥
अन्नपूर्णे सदापूर्णे शंकर प्राण वल्लभे।
ज्ञान वैराग्य सिद्धयर्थ भिखां देहि च पार्वति।।
ब्रह्मार्पणं ब्रह्महविर्ब्रह्माग्नौ ब्रह्मणा हुतम् ।
ब्रह्मैव तेन गन्तव्यं ब्रह्मकर्म समाधिना ।।

 

भोजन ने के बाद बोलें ये मंत्र
अगस्त्यम कुम्भकर्णम च शनिं च बडवानलनम।
भोजनं परिपाकारथ स्मरेत भीमं च पंचमं ।।
अन्नाद् भवन्ति भूतानि पर्जन्यादन्नसंभवः।
यज्ञाद भवति पर्जन्यो यज्ञः कर्म समुद् भवः।।

 

भोजन मंत्र का महत्व

एक बात जो आज का विज्ञान भी प्रमाणित करता है कि आप जिस भी महौल में भोजन करते है। आपके शरीर में उसी माहौल से सम्‍बन्धित रसायन का निर्माण होता है।

यदि आप भोजन करते समय क्रोध करते है तो आपके शरीर में हानिकारक रसायन का निर्माण होगा। यदि आप भोजन करते समय शांत रहते है तो आपके शरीर में लाभकारक रसायन का निर्माण होगा।

इसी से सनातन संस्‍कृति में भोजन करने से पूर्व, भोजन मंत्र का उच्‍चारण करना लाभकारी बताया गया है। जब आप भोजन मंत्र का उच्‍चारण करते है तो आपका मन शांत होता है।

और आप भोजन के प्रति सम्‍मान से भर जाते है, जिससे एकाग्र मन होकर भोजन का आन्‍नद ले पाते है। आपके शरीर में विषैले रसायन का निर्माण नही होता है। और आप एक सुखी जीवन जीते है।

 

 

खाने की थाली के चारों ओर आखिर क्यों छिड़का जाता है जल, जानें भोजन करने से पहले और बाद के सारे नियम

सनातन परंपरा में भोजन से पहले और बाद में करने के लिए कुछ नियम बताए गये हैं, अन्न देवता की प्रसन्नता और उनका आशीर्वाद पाने के लिए प्रत्येक व्यक्ति को इसे जरूर करना चाहिए।

 

भारतीय संस्कृति में खाना क्या खाना चाहिए, कब खाना चाहिए और किसके हाथ का बना खाना चाहिए और कैसे खाना चाहिए इसके बारे में विस्तार से बताया गया है। जैसे हमारे यहां थाली के चारों ओर तीन बार जल छिड़कने की परंपरा रही है। जिसका अभिप्राय अन्न देवता का सम्मान करना होता है। हालांकि इसके पीछे एक तार्किक कारण भी था। चूंकि पहले लोग अमूमन जमीन पर ही बैठकर खाना खाया करते थे। ऐसे में जल से आचमन करने के कारण थाली के चारों ओर घेरा सा बन जाया करता था। जिसके चलते थाली के पास कीटाणु नहीं आया करते थे। आइए भोजन से जुड़े कुछ ऐसे ही नियम जानते हैं —

— जैसा खाए अन्न वैसा रहे मन। इस कहावत से ही पता चलता है कि अन्न हमेशा ईमानदारी से कमाकर ही खाना चाहिए।

— भोजन बनाने वाले और खाने वाले दोनों व्यक्ति का मन प्रसन्न रहना चाहिए।

— भोजन का निर्माण शुद्ध जगह पर होना चाहिए।

— माता, पत्नी और कन्या के द्वारा बनाया गया भोजन हमेशा वृद्धि करने वाला होता है।

— हमारे यहां भोजन सामग्री सबसे पहले अग्निदेव को समर्पित की जाती रही है। इसके बाद पंचवलिका विधान है। जिसमें गाय,

कुत्ते, कौए, चींटी ओर देवताओं के लिए भोजन निकाने का विधान है।

— पंचवलिका निकालने के बाद यदि घर में कोई अतिथि आया है तो उसे भोजन से संतृप्त करने का नियम है। यहां पर यह

जान लेना बहुत जरूरी है कि घर में अतिथि यानि जिसके आने की कोई तिथि न हो, उसके लिए उसी समय खुशी-खुशी

ताजा भोजन बनाकर खिलाना चाहिए।

— भोजन कैसा भी बना हो कभी भी भूलकर उसकी निंदा नहीं करना चाहिए। ईश्वर का प्रसाद समझकर उसे स्वीकार करना

चाहिए।

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